THE DIVERTED TRAIN 12460

आज मैं आपको दो दोस्तो की ऐसी कहानी बताने वाला हूँ जो आज तक भी वो भूले नहीं हैं इस कहानी मैं डर , सस्पेंस और मजा हैं। ये जो दो दोस्तों के साथ हुआ था इ

हेलो गाइज आपसे दुबारा मिलकर बहुत  ख़ुशी हुई। आशा करता हूँ  आप सब खुश और सुरक्षित होंगे। मेरे  न्यू  ब्लॉग मैं आपका स्वागत हैं वेलकम टू माय न्यू  ब्लॉग।🙏 आज मैं आपको दो दोस्तो की ऐसी कहानी बताने वाला हूँ  जो आज तक भी वो भूले नहीं हैं इस कहानी मैं डर , सस्पेंस और मजा हैं। ये जो दो दोस्तों के साथ हुआ था इसे आप घटना भी कह सकते हैं।  
इस घटना मैं जो दो  दोस्त हैं वो मैं और मेरा दोस्त गौरव(बिल्डर) हैं। 😂तो  हमें जाना था अम्बाला से दिल्ली ये सफर कम से कम तीन से चार घंटे का था पर उस दिन हमने ये सफर सात घंटे मैं ख़त्म किया और जो इस बिच हुआ वो मैं आपको बताता हूँ बहुत मजा आएगा। 

१. कॉलेज की छुट्टियां 

तो इस कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार होती हैं की होली के दिन चल रहे थे और हमारी हुई थी होली की कुछ दिन की छुट्टियां तो छुट्टियों मैं जाना होता हैं घर और हमने इसी  चाह मैं पेहले ही कर ली थी ट्रैन की टिकट बुक और हम कर  रहे थे चलने की तैयारी।
Choose Happiness Every Time
फिर वो दिन आता हैं जिस दिन हमे जाना था अपने घर तो मैं और बिल्डर हुए तैयार जाने के लिए अगर आप बिल्डर को या मेरे दोस्तों को नहीं जानते हो तो मेरे पिछ्ले ब्लॉग पढ़े   Other blog
बिल्डर रहता हैं हॉस्टल मैं और मैं पीजी मैं तो स्टेशन जाने के लिए बस लेनी होती हैं  तो बिल्डर मुझे कॉल करता हैं निकल ले भाई और मैं देखता हूँ की बहार उस दिन बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी और मैं उसी बारिश मैं निकल लिया। और फिर हम अड्डे पर मिले और बस पकड़ी हम बहुत  खुश थे की हम घर जा रहे हैं पर हमे आगे का क्या पता था  हमारे साथ 😂और हम निकल लिए अम्बाला स्टेशन की ओर ट्रैन के लिए। 

२. प्लेटफार्म न. तीन 

 अब हम दोस्तों के पेसो का लेंन देन का हिसाब लगाते हुए , बस के गाने सुनते सुनते और बारिश के मजे लेते हुए पहुचे अम्बाला जहां से हमें लेनी थी अपनी ट्रैन।  मैं आपको बतांदु  की हमारा  बिल्डर ट्रैन में कम ही सफर करता  हैं क्युकी उसे लगता हैं की ये लेट होती हैं तो इसलिए वो बस से जाता हैं मगर उस दिन मैं उसको लेके आया ट्रैन मैं क्युकी मैं तो ट्रैन से ही अता जाता हूँ मैंने उसको बोला  कही ना लेट होती तू चल और उसी दिन मेरे भाग फूटे थे बिचारे बिल्डर को भी साथ ले गया 😂
तो हम कुछ खाते हैं क्युकी हम कुछ लेके नहीं चलते हैं साथ क्युकी पता हैं सफर कम ही हैं क्यों बोज  मरे 😜
और फिर अंदर गए स्टेशन  के और हमने देखा की हमारी ट्रैन एक घंटे लेट थी और मैं इस ट्रैन में आता जाता था तो मुझे पता था की ये ट्रैन छे न. प्लेटफॉर्म पर आती हैं और मैं बिल्डर को लेकर चल पड़ा छे न. की तरफ ओर तभी ...
The joy of losing myself in the city is the discovery of hidden ...
 एक ट्रैन  प्लेटफॉर्म  न. तीन पर आती है और हम थोड़े दूर थे ट्रैन से तो मुझे थोड़ा कम ही दिख्ता हैं दूर का तो मैंने बिल्डर को बोला ट्रैन का न. और नाम देखने को पर क्या पता था बिल्डर भी मेरे जैसा है उसे भी नहीं  दीखता 😂 क्युकी वो ट्रैन बिलकुल वोही पेंट वोही बोगी का स्टाइल था मुझे लगा की यही अपनी ट्रैन हैं  और वो हमारी जो ट्रेन थी उसी के टाइम पर आती  हैं तो और यकीन सा हो जाता हैं और फिर हमने उसके पास जाके देखा तो नाम भी ठीक था ट्रैन का रूट  भी ठीक था दिल्ली जाने वाला और ये देख के हम फटाफट उसमे  बेठ  लिए और वो ट्रैन थी बिलकुल खली फिर भी हमने सोचा की होली का टाइम हैं होसकता हैं उसकी वजह से हो मगर हमे कहा  पता था की यो कोई और ही ट्रैन हैं और दस मिनट बाद वो ट्रैन स्टेशन से चल पड़ी। 

३. अब कुछ नहीं हो सकता 

और हमारी बोगी मैं उन कम से कम दस लोगो के साथ वो ट्रैन चल पड़ी और हम अपने सीट ढूंढ के बेठ  गए की अब बस दो -तीन घंटे मैं पहुंच जायँगे। 😆 और फिर अता हैं पहला स्टेशन जो सिर्फ  दस मिनट   मैं  आजाता हैं  हमारी ट्रैन का न. था 12460 जिसका पहला स्टेशन था करुक्षेत्र पर जहा हम पॉऊचे वो था बराड़ा और जब हमने ये देखा तो हमारे हो गए थे होश धोले  तभी मेने बिल्डर को बहार भेजा ट्रैन का न. और नाम दुबारा देखने को पर वो सब वही था  जो गलत था फिर मेने एक बंदे से पूछा जो लोकल सा लग रहा था  और वो कहता हैं की भाई ये वो ट्रैन नहीं हैं 😐 और अब हमें ना तो ट्रैन का न. पता था और ना  ही नाम  और यहां  से स्टार्ट होता हैं हमारा गुमनाम सफर जिस रस्ते पर हम कभी गए नहीं थे।  तब हमें लगता की अब कुछ नहीं हो सकता अब तो इसी मैं चलना पड़ेगा। 

मुझे पता हैं  सोच रहे होंगे की हम बिच मैं क्यों नहीं उतरे मैं अपको बताऊ की जिस रस्ते पे हम थे उस रस्ते का कही से भी कोई कनेक्शन नहीं था करुक्षेत्र वाली लाइन से जोकि हम ट्रैन ही बदल ले और अगर हमे दुबारा उत्तर कर  अम्बाला जाना होता तो उसकी ट्रैन बहुत लेट थी उस स्टेशन से और बस और कुछ वहां  से जाता नहीं था तो हमने इसमें ही रहने की सोची की एक घंटा लेट सही पर दिल्ली तो पहुंचा  ही देगी मगर...... 

४. ट्रैन के हालात 

अब हम एक ऐसी ट्रैन मैं थे जिसका हमे कुछ नहीं पता की कहा रुकेगी, कितनी देर रुकेगी और उसका  कोई भरोसा भी नही था की कही भी रुक जाती थी और बहुत देर तक रुकी रहती थी। अब मैं आपको ट्रैन के अंदर के हालत बताता  हूँ  जिसमे एक शादी का न्या  जोड़ा, एक अंकल जो करीब तीस -पेतिस की उम्र के थे एक जो थोड़े साठ की उम्र के थे जो की अपने फ़ोन पे लगे हुए थे पूरी तरीन में उसी की आवाज आ रही थी , दो हम और एक दो मुस्लमान औरत बैठी थी। तो बस यही कुछ दस आदमी थे पूरी बोगी मैं और ऐसा ही और डब्बों का हाल था। 
How to Overcome confusion?? | Grip 2 Life !
अब मेने कही ना कही से उस गाड़ी के रुट का पता  चलाया जो पता चला की ये ट्रैन  सहारनपुर ,मुज्जफरनगर, मोदी नगर , मेरठ से होती हुई दिल्ली जायगी।  जो की कम से कम छे घंटे ले ले गी दिल्ली जाने के लिए और जैसे उसके हाल थे रुकते रुकते चलना तो हमे दस घंटे लग रहा था। 
अब क्या करे जैसा था ठीक था मगर अब हमने न कुछ खाया था न पिया था तो  भूख भी लग रही थी ऊपर से ट्रैन ऐसी की उसमे ना कोई खाने वाला आता और नकोई पानी वाला तो इस से  हम बहुत परेशान हो चुके थे और इसमें हम नहीं हमारे साथ बैठे हुए और भी सब को परेशानी हो रही थी क्यूकी किसी को कुछ पता ही नहीं था और अब हम चल रहे हैं उतर प्रदेश के सुनसान रास्तो जहाँ सिर्फ एक ही ट्रैन आ-जा सकती हैं जहा ऐसा लग रहा था की यहाँ  लूट-पाट भी  हो सकती हैं मगर भगवान की दया से कुछ हुआ नहीं। अब हमें चले कम से कम चार घंटे हो चुके थे तो घर वालो के फ़ोन भी आने शुरू हो गए की अब तक तो तुम पहुंच  जाते हो और अब हम उन्हें ये सब बताते हैं और फिर वो भी परेशान और अब हम पहुंचे मुजफरनगर लगा की बस अब तो पहुच ही जायँगे बस आने वाला हैं दिल्ली और फिर एक आदमी हमारी ट्रैन में चढ़ता हैं और हमसे पूछता हैं की ये  ट्रैन दिल्ली जायगी ना अब मेरे पास उसको कहने के  लिए कुछ नहीं  मैं उसको क्या बताता की जाएगी तो पर पता नहीं कैसे मगर फिर भी मेने अपनी गर्दन हिला दी की हाँ  जायगी अब और कहता भी क्या क्युकी वो बिचारा अपनी ट्रैन छोड़ कर  हमारी मैं आके  बठा था हमे हंसी भी आ रही थी की ये भी आगया गुमनाम ट्रैन में 😂फिर वो चल पड़ी  स्टेशन से और तभी। ....... 

५. अब बस बहुत हुआ 😖

अब हमारी शक्ल देखने लायक हो चुकी थी न कुछ खा रखा न कुछ पी  रखा बस चले जा रहे और अपनी मंजिल का इंतजार कर रहे अब तो बस  ये था की कैसे न कैसे पहुँच जाएँ  और हम निकले मुज्जफरनगर से तभी हमे पता चलता हैं की हमारी ट्रैन अब फिर डाइवर्ट हो चुकी हैं 😦 अब ये और पेरशानी आ गई पहले ही कुछ ज्यादा नहीं पता था इस ट्रैन के बारे मैं अब ये और। 

Panic Attacks and Panic Disorder - HelpGuide.org
और अब हम चल पड़े  ऐसे इलाको मैं जहा स्टेशन पे एक बाँदा भी न दिखे  और अब श्याम भी होनी स्टार्ट हो गई थी और बारिश का कहर भी  चल पड़ा था।  कही से पता चलता हैं की अब ये ट्रैन मोदी नगर ,मेरठ के रस्ते नहीं कोई शामली और बड़ौत के रस्ते होते हुये दिल्ली जायगी। अब चलते चलते जो हमारी और दूसरे यात्रियों की हालत होती हैं कोई बोलता हमे यही उतर दो , कोई तो रोने लग गया की कहा ले आये हमें क्युकी जहा  चार घंटे लगने थे अब वहा दस लग रहे थे तो सबको चिंता हो चुकी थी मगर हमारी ट्रैन ऐसी थी जहा  रुकना चाइये वह रुक नहीं रही थी और जहा नहीं रुकना चाइये  वहां  रुक रही थी कोई कोई तो सोच रहा था की चलती से कूद लो अब आप  देख सकते हैं की लोग  कितने परेशान हो चुके थे अब हम कैसे न कैसे पॅहुचते हैं शामली जहा  किसी ने ट्रैन की चैन खिच दी थी उसमे कम से कम ट्रैन एक घंटा रुकी रही  और हम एक दूसरे को समझाने मैं लगे हैं की कुछ नहीं होगा सब ठीक हो जायगा पैनिक नहीं होना चाइये ऐसी प्रॉब्लम में 😂


६. दिल्ली की ओर 

बस अब  जैसे ही शामली और बड़ौत क्रॉस किया हमे लगा बस अब तो पहुच गए मगर कहा ऐसी किसमत अब हम दिल्ली मैं आ तो चुके थे मगर अभी पहुंचे नहीं थे गाड़ी की स्पीड सिर्फ बीस से तीस और ऊपर से बारिश जबरदस्त  हम इतने दुखी हो चुके थे इस ट्रैन से की जहा  भी अब ये रुके वहां  से मेट्रो ले के चले जायँगे बस इस ट्रैन मैं नहीं बैठेंगे मगर हमारी ट्रैन ऐसी की जहा मेट्रो का स्टेशन  होता वहीँ नहीं रूकती और ऐसे ही कही बिच मैं रुक जाती और अब तो चलते चलते मेट्रो का भी ऑप्शन जाने लगा था मगर हमे हार नहीं माननी चाइये और अगला स्टेशन था आनंद बिहार जहा मुझे लगा की यहा तो पक्का रुके गी और मेने बिल्डर को बोला  की यहां  ट्रैन रुके या ना  मगर हमे उत्तर लेना हैं क्यूंकि ट्रैन भी आराम से चल रही थी। 
grammatical word: finally | English Help Online's Blog
मैं बिल्डर को बोलता हुं  की सामान फेक ते हैं और कूद ते हैं मगर बिल्डर ने कहा भाई  पहले मैं कूदूंगा बाद मैं सामान देखेंगे वो इतना दुखी हो चुका था😂 इस ट्रैन से अब ये तरकीब थी हमारी अब आता  हैं आनद बिहार स्टेशन और जब देखते  हैं की ट्रैन की स्पीड हो चुकी थी सत्तर से अस्सी के करीब और वो रुकी भी नहीं अब हमने सारी  आस छोड़ दी थी और सोच लिया था अब चाहे  टाइम लेले पर दिल्ली पहुंचा दे और ऐसे ही लोगो के दुखड़े सुनतेहुए कुछ अपने हम साढ़े आठ बजे दिल्ली पहुंचे और ट्रैन के रुकने से पहले हम उसमे से कूद लिए की आगे से इस ट्रैन मैं तो नहीं आना और सब लोगो ने राहत की साँस ली। 
और फिर मैंने वहां सोनीपत आने के लिए पैसेंजर ट्रैन ली और बिल्डर ने गुडगॉंव् जाने के लिए मेट्रो हम बहुत लेट भी हो चुके थे  क्युकी हम सुबह ग्यारह बजे के चले हुए रात को साढ़े आठ दिल्ली पहुंचे  थे जो की बहुत लेट था अभी हमे एक घंटे का सफर और भी करना था पर उस ट्रैन से पीछा छुड़ाना था। अब आगे  रास्ता साफ़ था 
आपको एक बात और बताऊ वो ट्रैन सोनीपत भी आने वाली थी पर आपको लगता है में उसमे दुबारा बैठूंगा 😛


तो ये था गाइस मेरी  एक लाइफ की घटना जो मेरे साथ हुई कमैंट्स मैं बताइये ये आपको किसी लगी और अगर आपकी भी कोई ऐसी घटना या ट्रिप हैं तो मुझे कमेंट्स मैं बताइये मैं उसे अपने ब्लॉग मैं जरूर लिखूंगा 

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धन्यवाद। ..... 😊


Chaman Nagar

Author & Editor

I am Chaman Nagar. I am blogger since 2020 .Which tells about the enjoy of young life.Recently I started the blogging from a great inspiration

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